Khwabgaah.....
Friday, May 27, 2016
Sunday, June 2, 2013
...
अब एहसास हुआ जाके ,,,,,
सही तो है ग़र कहते थे वो की खुली किताब है ज़िन्दगी उनकी ...
चंद पन्ने चुराए थे उनसे मज़ाक मैं मैंने कभी ,
अरसों बाद किसी जिल्द से चिपके आज मिले हैं !
Thursday, March 7, 2013
यूहीं ....
..कुछ कहानी ऐसी होती हैं,जिनके पन्ने ऐसे बिखरे होते हैं,,,,
जिन्हें बटोरने मैं कितने ही सफ़र कम मालूम होते हैं।
उलझे धागे ..
घर के किसी कोने मैं जाने कबसे कुछ उलझे धागों के गुच्छे दबा रखे हैं ...
क्या जाने कितनी ही बार बहार आये,,
,हर बार फुर्सत मैं सुलझाने की सोचके वापस वही रख दिये।
साल दर साल कुछ नए टुकड़े उस गुच्छे में जुड़ते गए,,,फंसते गए,,,
अभी घर से मीलों दूर यूहीं ख़ाली बैठे हुए लगा की,
ले आती उन्हें तो ये समय कट जाता शयद….
Monday, December 17, 2012
कंचे ....
तब जब वक़्त उलझ सा गया था ...
और सुलझाने पर कोई गाँठ रह गयी थी कहीं ..
..कोई पल तब गुज़र न प् रहा था उससे होके,
तभी कुछ पल वहीँ बिखर गए थे गुज़रने की कोशिश में !
उन्हें बटोर लिया था हमनें कंचों की तरह ...
आज भी किसी रुमाल में बांधके रखें है कहीं,
कहाँ .....ये याद नहीं आता ।
Wednesday, September 12, 2012
Thursday, July 5, 2012
दिक्कत ....
अंदर कमरे की खूंटियों पे मैंने भी कई मुखौटे टांग रक्खे थे ...
पर चाभी पता नहीं कब-कहाँ गुम हो गई .....
........शायद ज्यादा ही सम्हाल के रख़ दी कहीं !!
फ़िलहाल उधार के चेहरों से काम चल रहा है ....
......पर 'आईने' को लगता है,'मैं' बदल गयी हूँ !
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