ज़िन्दगी की उधेड़ बुन मैंने भी सोचा कुछ बुना जाए,
इन तमाम उलझे धागों को थोडा तो सुलझाया जाए ..
पर क्या ??
कुछ ऐसा जो अलग हो, अनोखा हो..
या शायद सच कहूँ तो बस जैसा हो मेरा हो..
... माँ से पूछा तो जवाब मिला ,कुछ ऐसा जो थकने पे राहत पंहुचा सके ,
पापा के हिसाब से सो मुझे सुला सके ..
...भाई ने कहा ,जिसे पेहें के तेरे आंसू किसी को न दिखे ..
बहेने ,चिल्लाई...जिसके अन्दर मेरा बचपन छुपा रहे........
फिर भी कुछ समझ नहीं आ रहा था ...
क्या करूँ ??
.
.
.
....कई बार कोशिश भी की पर नाकाम ...
तभी एक दिन एक सपना मुझसे मिलने आया ,नीला आकाश-रुई से बादल,
कितने ही रंग के फूल,में भी कितनी सुन्दर लग रही थी तब !!
एक सुर्ख कली दिखी वहां ,,
छूना चाहा तो हाँथ में काटे चुभ गए ...
...फिर....आँख खुल गई मेरी ..
देखा कोई अजनबी मेरे धागों तो सुलझाने की उधेड़-बुन में लगा हुआ था ..
और...उसका कम्बल मेरे ऊपर फैला था ....
और में फिर सो गई.....!!!!!!
इन तमाम उलझे धागों को थोडा तो सुलझाया जाए ..
पर क्या ??
कुछ ऐसा जो अलग हो, अनोखा हो..
या शायद सच कहूँ तो बस जैसा हो मेरा हो..
... माँ से पूछा तो जवाब मिला ,कुछ ऐसा जो थकने पे राहत पंहुचा सके ,
पापा के हिसाब से सो मुझे सुला सके ..
...भाई ने कहा ,जिसे पेहें के तेरे आंसू किसी को न दिखे ..
बहेने ,चिल्लाई...जिसके अन्दर मेरा बचपन छुपा रहे........
फिर भी कुछ समझ नहीं आ रहा था ...
क्या करूँ ??
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....कई बार कोशिश भी की पर नाकाम ...
तभी एक दिन एक सपना मुझसे मिलने आया ,नीला आकाश-रुई से बादल,
कितने ही रंग के फूल,में भी कितनी सुन्दर लग रही थी तब !!
एक सुर्ख कली दिखी वहां ,,
छूना चाहा तो हाँथ में काटे चुभ गए ...
...फिर....आँख खुल गई मेरी ..
देखा कोई अजनबी मेरे धागों तो सुलझाने की उधेड़-बुन में लगा हुआ था ..
और...उसका कम्बल मेरे ऊपर फैला था ....
और में फिर सो गई.....!!!!!!
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