Friday, January 7, 2011

gunahon ka devta

आज काफी दिन बाद काफी अच्छी किताब पढ़ी,'गुनाहों का देवता',धर्मवीर भारती जी की.
 'चंदर' (नायक)की कश्मकश और 'मधु' (नायिका) का समर्पण,बिनती का यथार्थ सब इतना अपना लगता है..जैसे मेरे पड़ोस की कहानी है.या सच कहूँ तो कहीं अन्दर के कितने ही अंतर्द्वंद सामने लिखे मिल गए..हर पन्ने पे इतनी सोच की हेरा फेरी की...बस और कुछ नहीं..ज्यादा लिखना नहीं चाहती,हर भावना को शब्दों में नहीं ढालना चाहिए..क्यूकि शब्द हमेशा भावनाओं के साथ न्याय करे,ये ज़रूरी तो नहीं..बस इतना कहूँगी की ये कहानी कल्पना और यथार्थ के बीच की बेहेस है....और एक बार ज़रूर पढनी चाहिए क्यूकि ये सोचने पे मजबूर करती है...

1 comment:

  1. गुड जॉब अच्छा कर रहे हो, वैसे भी आजकल की ज़िन्दगी में कुछ अच्छा करने के लिए होना चाहिए आदमी के पास, ग्रेट थिंग , कीप उप थे गुड वर्क.

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