Monday, September 5, 2011

हिस्सेदार...

ध्यान से सुनो तो हर चीज़ जैसे हमसे कुछ कहती है....
हर चीज़ की जुबां होती है....
हर चीज़ मैं कुछ हिस्सा अपना और खुद कुछ उसका सा लगता है..
तभी तो मौसम के  साथ अन्दर भी कुछ शक्लें बदलती रहती हैं !
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पतझर में सूखे पत्तों के ढेर में जैसे कभी किसी एहसास केचुली सी दिखाई पड़ती है..
कभी बारिश में छत से टपकते पानी के साथ कुछ सपनों के रिसने की चिपचिपाहट होती है...
धूप होती है तो ऐतबार के पत्ते कुम्हला से जाते हैं..
तब इंतज़ार रहता है,चांदनी की चंद बूंदों का,जो चारों ओर भिखरी होते हुए भी मुझ पर कभी कभी पड़ती है !!

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