Wednesday, June 20, 2012

पूराने दोस्त..





फिर बादल आये हैं बाहर किवाड़ पे ..
अपने गीले हांथों से उचक-उचक के झांकते हैं....
जोर जोर से आवाज़ देकर बुलाते भी हैं।
पर जाऊं कैसे !!!
खेलने की ऊम्र अब नहीं मेरी ....
....सब कहते हैं 'बड़ी' हो गयी हूँ !!

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