Monday, December 17, 2012

कंचे ....



तब जब वक़्त उलझ सा गया था ...
और सुलझाने पर कोई गाँठ रह गयी थी कहीं ..
..कोई पल तब गुज़र न प् रहा था उससे होके,
तभी कुछ पल वहीँ बिखर गए थे गुज़रने की कोशिश में !
उन्हें बटोर लिया था हमनें कंचों की तरह ...
आज भी किसी रुमाल में बांधके रखें है कहीं,
कहाँ  .....ये याद नहीं आता ।

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