घर के किसी कोने मैं जाने कबसे कुछ उलझे धागों के गुच्छे दबा रखे हैं ...
क्या जाने कितनी ही बार बहार आये,,
,हर बार फुर्सत मैं सुलझाने की सोचके वापस वही रख दिये।
साल दर साल कुछ नए टुकड़े उस गुच्छे में जुड़ते गए,,,फंसते गए,,,
अभी घर से मीलों दूर यूहीं ख़ाली बैठे हुए लगा की,
ले आती उन्हें तो ये समय कट जाता शयद….
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